Sunday 30 August 2015

Why Hindus do parikarma to Temples or God idols?

क्या आप जानते हैं कि.... मंदिरों में पूजा के बाद उसकी परिक्रमा का वैज्ञानिक महत्व एवं उसकी वैज्ञानिकता क्या है....???

असल में .... आज के अंग्रेजी स्कूलों में पढ़कर..... खुद को अत्याधुनिक समझने वाले लोगों की ऐसी सोच होती है कि....

जिस तरह मुस्लिम बिना किसी सर-पैर और वैज्ञानिकता के .... दिन भर मस्जिदों से अजान देकर .......समाज में अकारण ही ध्वनि प्रदूषण फैलाते रहते हैं....

उसी प्रकार , हमारे हिन्दू सनातन धर्म में भी.... मंदिरों में परिक्रमा करना महज एक औपचारिकता भर है..... जबकि, ऐसा नहीं है...!

हकीकत यह है कि.... पूर्ण रूप से एक वैज्ञानिक धर्म होने के कारण.... हमारे हिन्दू सनातन धर्म के एक-एक गतिविधि का ठोस वैज्ञानिक आधार है...!

और चूँकि..... - हर एक सामान्य व्यक्ति को उच्च वैज्ञानिक कारण समझ में आये ऐसा आवश्यक और संभव नहीं हो पाता ....इसीलिए, हमारे ऋषि-मुनियों ने ...उसे रीति-रिवाजों का रूप दे दिया ..... जो आज भी बड़ों के आदेश के रूप में निभाये जाते है.

दरअसल....

वैदिक पद्धति के अनुसार मंदिर वहां बनाना चाहिए जहां से पृथ्वी की चुम्बकीय तरंगे घनी हो कर जाती है .... और, इन मंदिरों में गर्भ गृह में देवताओं की मूर्ति ऐसी जगह पर स्थापित की जाती है. ... तथा, इस मूर्ति के नीचे ताम्बे के पात्र रखे जाते है..... जो यह तरंगे अवशोषित करते है.

इस प्रकार जो व्यक्ति रोज़ मंदिर जा कर इस मूर्ति की घडी के चलने की दिशा में परिक्रमा ( प्रदक्षिणा ) करता है.... वह इस एनर्जी को अवशोषित कर लेता है.

यह एक धीमी प्रक्रिया है और नियमित ऐसा करने से व्यक्ति की सकारात्मक शक्ति का विकास होता है.

और, इसीलिए हमारे मंदिरों को तीन तरफ से बंद बनाया जाता है जिससे इस ऊर्जा का असर बढ़ जाता है.

साथ ही..... मूर्ति के सामने प्रज्वलित दीप उष्मा की ऊर्जा का वितरण करता है.... एवं, घंटियों की ध्वनि तथा लगातार होते रहने वाले मंत्रोच्चार से एक ब्रह्माण्डीय नाद बनती है ...जो, ध्यान केन्द्रित करती है........(आगे दिये गये लिंक पर.....)
http://hindutavadarshan.blogspot.in/2015/05/blog-post_0.html

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